Purani Sadak

उर्वी, समिध मुखर्जी, केके

आं आ आ आ आ आ पिघलता ये सूरज कहे ढलते ढलते दोबारा ना आयेंगे पल लौट कर ये नसीबों से मिलती है नजदीकियाँ ये तू जाते लम्हों को गले से लगा ले के थमता नहीं वक़्त का कारवाँ ऐ मालिक बस इतना बता दे क्यूँ एसी है तेरी जमीं जिसे हमसफ़र हम बनाए वही छुट जाए कहीं दिल की पुरानी सड़क पर बदला तो कुछ भी नहीं मुझे थाम कर चल रहा है तू ही बस तू ही हर कहीं

Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind

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