Lamhe

राघव चैतन्य

कुछ लमहे अधूरे से कुछ मैं करूँ पूरे ये कुछ तुम से कुछ हम से रास्ते ये जो चले बेख़बर ये हवा मैं उड़ता ही रहा क्यूँ चला बेसबर हवाओं में घुले तेरे संग नए रंग क़दमों में है लगा जो नया सा समाँ हुआ कमी लफ़्ज़ों की मेरे ढूँढता क्यूँ फिर रहा मंज़िल है दूर कहीं चलता हुआ मैं सरफिरा कोई राज़ है तेरा ये मन कहे मेरा हर साज़ में यहाँ कोई राज़ है तेरा ये मन कहे मेरा हर साज़ में यहाँ खुश हूँ ज़रा सा मैं खुद में छिपा सा मैं चलता हुआ लमहे सा खुश हूँ ज़रा सा मैं खुद में छिपा सा मैं चलता हुआ लमहे सा कुछ है कुछ है मुझ में जो अंदर है बसा क्यूँ रुका जो छिपा इन साँसों में मिले जो कहे ना दिखे नज़रों से ही मेरी जो नमी सा हुआ राहें चलती जो धूप में सँभलता मैं ज़रा नाव खड़ी जो छाँव में बैठा हुआ अजनबी सा ये मन कहे मेरा ना घर ना पता बस उड़ता ही रहा मैं शाम कुछ नया जब रंगों से जुड़ा मैं उड़ती पतंग सा खुश हूँ ज़रा सा मैं खुद में छिपा सा है वक्त ये लमहे सा खुश हूँ ज़रा सा मैं खुद में छिपा सा है वक्त ये लमहे सा ये हा ये या ही या हम्म्म हम्म्म

Written by: शशांक त्यागीLyrics © O/B/O DistroKidLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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