Ek Tukda Dhoop

राघव चैतन्य

टूट के हम दोनो में जो बचा वो कम सा है एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है एक धागे में है उलझे यूँ के बुनते बुनते खुल गए हम थे लिखे दीवार पे बारिश हुई और धुल गए टूट के हम दोनो में जो बचा वो कम सा है एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है टूटे फूटे ख्वाब की हाए दुनिया में रेहना क्या झूट्ठे मूठे वादो की हाए लेहरो में बेहना क्या हो दिल ने दिल में ठाना है खुद को फिर से पाना है दिल के ही साथ में जाना है टूट के हम दोनों में जो बचा वो कम सा है इक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है सोचों ज़रा क्या थे हम हाए क्या से क्या हो गए हिजर वाली रातों की हाए कब्रो में सो गए हो तुम हमारे जितने थे सच कहो क्या उतने थे जाने दो मत कहो कितने थे रास्ता हम दोनों में जो बचा वो कम सा है एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है टूट के हम दोनो में जो बचा वो कम सा है एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है

Written by: ANURAG SAIKIA, SHAKEEL AZMILyrics © Universal Music Publishing GroupLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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