O Ganga Behti Ho Kyon Bistar Hai Apaar

Bhupen Hazarika

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा ओ गंगा बहती हो क्यूँ नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ ओ गंगा तुम गंगा बहती हो क्यूँ विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्यूँ विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्यूँ नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्यूँ अनपढ़ जन, अक्षरहिन अनगीन जन, खाद्यविहीन, नेत्रविहीन दिक्षमौन हो क्यूँ इतिहास की पुकार,करे हुंकार ओ गंगा की धार निर्बल जन को,सबल-संग्रामी समग्रो गामी,बनाती नहीं हो क्यूँ व्यक्ति रहे, व्यक्ति केंद्रित सकल समाज व्यक्तित्व रहित निष्प्राण,समाज में ही दौड़ती हो क्यूँ विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा ओ गंगा बहती हो क्यूँ रुदस्विनी, तुम नरनि तुम निश्चय चेतन नहीं प्राणों में प्रेरणा, बनती मई क्यों क्यूँ उनमद अवमी,कुरुक्षेत्रग्रमी,गंगे जननी नव भारत में भीष्मरूपी,सुतसमरजयी तुम जनती नहीं हो क्यूँ विस्तार है अपार,प्रजा दोनों पार करे हाहाकार निःशब्द सदा ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ

Written by: BHUPEN HAZARIKA, SHARMA PANDIT NARENDRALyrics © Royalty NetworkLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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