Humdard
पर्री जी, नेहा पांडेय
न मौत ने किसी को रिहा किया
ना इमारतें जल के ज़न्नत बनी
न मौत ने किसी को रिहा किया
ना इमारतें जल के ज़न्नत बनी
उस दर्द की शुक्र गुज़ार हूँ मैं
जिस दर्द में हम हमदर्द बने
न मौत ने किसी को रिहा किया
ना इमारतें जल के ज़न्नत बनी
खोलो आँखे बोलो बातें
दिल में जो तूआ के
यादो में मुझको समझा के
छोड़ गई तू रो रुला के
चहु में कभी सूरज डूबे
देखु चाँद तो रूह कापे
नाम आखो से सोचु यहाँ पे
तू ही बता कैसे रोकू रातें
किसी की साझा मुजको मिली
जो ज़िन्दगी में फेका मुजको घुमा के
हमेशा के लिए तुजको सुला के
में भी मर गया तुजको जला के
दम घुटे अब हर जगह पे
घर लगे मुजको मेरे सलाखे
एक ही चाहत है खुदा से
मुझको भी अपने घर बुला ले
हाँ
खलती है कमी तेरी यहाँ यहाँ
हाँ
भटकती है रूह मेरी यहाँ वहां
हाँ
अब जियो ढूढने को रहे तेरी सदा
तड़पती अब ये मेरी निगाह निगाह
जब रातो को ना सोता हूँ तो कुछ सुना जा
कोई प्यारी सी कथा से मुजको सुला जा
पता है वह तू मुझे सुन रही होगी
तू मेरी ज़िन्दगी वापिस तू आ जा
तकलीफ होगी बेचैन होंगे
ये रास्ते है पथरीले
वो ज़िन्दगी की कहानी कैसी
के बिन लड़े जो जिले
तकलीफ होगी बेचैन होंगे
ये रास्ते है पथरीले
वो ज़िन्दगी की कहानी कैसी
के बिन लड़े जो जिले
अगर गम ना हो तो आरजू ही क्या
आरज़ू से ही तो हिम्मत बने
उस दर्द की शुक्र गुज़ार हूँ मैं
जिस दर्द में हम हमदर्द बने
न मौत ने किसी को रिहा किया
ना इमारतें जल के ज़न्नत बनी
Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind
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