तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
तू तली सी मच्छी लगती है
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
तू तली सी मच्छी लगती है
मैं सात जनम उपवासा हूँ
और सात समंदर प्यासा हूँ
जी बार के तुझको पी लूँगा
तू गंदी अच्छी लगती है
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
तू तली सी मच्छी लगती है
आ आ आ आ आ आ आ आ आ
मैं ना जानू क्या शरम हया
तुजे जाने के मैं सब भूल गया
जो कहते है ये कुफर ख़ाता
काफ़िर क्या हैं उनको जब बताओ
मैं ना जानू क्या शरम हया
तुजे जाने के मैं सब भूल गया
जो कहते है ये कुफर ख़ता
काफ़िर क्या हैं उनको जब बताओ
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
तू तली सी मच्छी लगती है
सच सच मैं बोलने वाला हूँ
मैं मन का बेहद काला हूँ
तेरे रंग में मन रंग लूँगा
तू रंगी अच्छी लगती है
तू सच्ची अच्छी लगती है
तू अच्छी अच्छी लगती है तू झूती
तू रूठी अच्छी लगती है
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
तू तली सी मच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची
Written by: DIBAKAR BANERJEELyrics © Sony/ATV Music Publishing LLCLyrics Licensed & Provided by LyricFind
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