Kisi Gaon Mein

Dilraj Kaur

किसी गाँव मे एक हसीना थी कोई वो सावन का भीगा महीना थी कोई जवानी भी उस पर बड़ी महेरबा थी महोब्बत जमी है तो वो आस्मा थी वो अब तक है जिंदा वो अब तक जवा है किताबे महोब्बत की वो दास्ता है उसे देखकर मोम होते थे पत्थर मगर हमसे पूछो ना उसका मुक़द्दर नगर की बहू वो बनाई गई थी अलग उसकी महफ़िल सजाई गई थी वो गाँव के लड़को को चाहत सिखाती सबक वो महोब्बत का उनको पढ़ती मगर वक्त कोई नया रंग लाया ना पूछो कहानी मे क्या मोड़ आया हुआ प्यार उसको किसी नौजवा से नतीजा ना पूछो हमारी जूबा से महोब्बत की राहो पे जिस दिन चली वो जमाने की नज़रो मे मुजरिम बनी वो नसीबो मे उसके महोब्बत नही थी महोब्बत की उसको इजाज़त नही थी जमाने ने आख़िर उसे जब सज़ा दी हसीना ने अपनी ये जा तक लूटा दी वही आस्मा है वही ये जमी है जवा वो हसीना कही भी नही है मगर रूहे उलफत की मंज़िल जुड़ा है महोब्बत की दुनिया का अपना खुदा है वो अब तक है जिंदा वो अब तक जवा है किताबे महोब्बत की वो दस्ता है किसी गाँव मे एक हसीना थी कोई वो सावन का भीगा महीना थी कोई

Written by: Lyrics © Sony/ATV Music Publishing LLCLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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