Dil Pe Zakhm

Jubin Nautiyal

हस्ता हुआ ये चेहरा बस नज़र का धोखा है तुमको क्या खबर कैसे इन आंसुओ को रोका है हो तुमको क्या खबर कितना मैं रात से डरता हु सौ दर्द जाग उठते है जब जमाना सोता है हो तुमपे उँगलियाँ ना उठे इस लिए गम उठाते है दिल पे ज़ख्म खाते है दिल पे ज़ख्म खाते है और मुस्कुराते है दिल पे ज़ख्म खाते है और मुस्कुराते है क्या बताये सीने में किस कदर दरारे है हम वो है जो शीशों को टूटना सिखाते है दिल पे ज़ख्म खाते है लोग हमसे कहते है लाल क्यूँ है ये आंखे कुछ नशा किया है या रात सोये थे कुछ कम लोग हमसे कहते है लाल क्यूँ है ये आंखे कुछ नशा किया है या रात सोये थे कुछ कम क्या बताये लोगो को कौन है जो समझेगा रात रोने का दिल था फिर भी रो ना पाए हम दस्तके नहीं देते हम कभी तेरे दर ते तेरी गलियों से हम यूँही लौट आते है दिल पे ज़ख्म खाते है कुछ समझ ना आये कुछ समझ ना आये हम चैन कैसे पाये बारिशें जो साथ में गुज़री भूल कैसे जाए कैसे छोड़ दे आंखे तुझको याद करना तू जिये तेरी खातिर अब है कबूल मरना तेरे खत जला ना सके इस लिए दिल जलाते है दिल पे ज़ख्म खाते है और मुस्कुराते है हम वो है जो शीशों को टूटना सिखाते है दिल पे ज़ख्म खाते है

Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind

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