Jhoothi Sachchi Aas Pe Jeena

Chitra Singh, Jagjit Singh

झूठी सच्ची आस पे जीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक झुठी सच्ची आस पे जीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक मय की जगह खून ए दिल पीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक झुठी सच्ची आस पे जीना (झुठी सच्ची आस पे जीना) कब तक आख़िर, आख़िर कब तक (कब तक आख़िर, आख़िर कब तक) सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे तूफ़ानों की जद पे सफ़ीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक झूठी सच्ची आस पे जीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक एक महीने के वादे पर साल गुज़ारा फिर भी ना आये एक महीने के वादे पर साल गुज़ारा फिर भी ना आये वादे का ये एक महीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक झूठी सच्ची आस पे जीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक सामने दुनिया भर के गम हैं और इधर एक तनहा हम हैं सामने दुनिया भर के गम हैं और इधर एक तनहा हम हैं सैंकड़ों पत्थर एक आईना (सैंकड़ों पत्थर एक आईना) कब तक आख़िर, आख़िर कब तक (कब तक आख़िर, आख़िर कब तक) झुठी सच्ची आस पे जीना (झुठी सच्ची आस पे जीना) कब तक आख़िर, आख़िर कब तक (कब तक आख़िर, आख़िर कब तक) मय की जगह खून ए दिल पीना कब तक आख़िर, आख़िर कब तक झुठी सच्ची आस पे जीना (झुठी सच्ची आस पे जीना) कब तक आख़िर, आख़िर कब तक (कब तक आख़िर, आख़िर कब तक)

Written by: JAGJIT SINGH, KASHIF INDORILyrics © Royalty NetworkLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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