अब के बरस भी रह गये प्यासे
अब के बरस भी रह गये प्यासे
आग लगे इस सावन को
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
जिसने जलाया तन मन को
अब के बरस भी रह गये प्यासे
आग लगे इस सावन को
दुनियाँ से क्या करते शिकावत
लाये ना शिकवा लभ तक हम
अपने ही दामन की बिरानी
करते गवा ना कब तक हम
फूल ना थे तो रख लिये काँटे
फूल ना थे तो रख लिये काँटे
ऐसे सजाया दामन को
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
जिसने जलाया तन मन को
अब के बरस भी रह गये प्यासे
आग लगे इस सावन को
कितनी हीं गम की रात हो काली
होती है आखिर उसकी सहन
नफरत से ओ देखने वाले
इसकी भी है कुछ तुझको ख़बर
इसकी भी है कुछ तुझको ख़बर
प्यार मे है तासीर कुछ ऐसी
प्यार में है तासीर कुछ ऐसी
दोस्त बना दे दुश्मन को
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
जिसने जलाया तन मन को
अब के बरस भी रह गये प्यासे
आग लगे इस सावन को
लब्जों में हम दर्द समाते
इतनी कहाँ थी अपनी मजाल
दादे सुखन क्यों देते हमको
किसमें नहीं कुछ अपना कमाल
उसकी करो तारीफ़ कि जिसके
उसकी करो तारीफ़ कि जिसके
गम निखारा है फन को
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
ऐसी लगी बिरहा की अग्नि
जिसने जलाया तन मन को
अब के बरस भी रह गये प्यासे
आग लगे इस सावन को
Written by: 0 Hariharan, 0 Shaharyar, Kaif Bhupali, Munavar Massom, Muzafir Warsi, Tahir Faraaz, Ul Kaizer, Wali ArsiLyrics © Royalty Network, Sony/ATV Music Publishing LLCLyrics Licensed & Provided by LyricFind
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