Woh Nahi Mera Magar

कविता कृष्णमूर्ति, गुलाम अली

वो नहीं मेरा मगर वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है ये अगर रस्मों रिवाज़ों से बग़ावत है तो है वो नहीं मेरा मगर वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है ये अगर रस्मों रिवाज़ों से बग़ावत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है जल गया परवाना तो क्या ख़ता है शम्मा की जल गया परवाना तो क्या ख़ता है शम्मा की रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको मैं उसे कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको मैं उसे गैर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है सच को मैंने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया सच को मैंने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है(अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है) वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है ये अगर रस्मों रिवाज़ों से बग़ावत है तो है वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है

Written by: नायाब राजाLyrics © Phonographic Digital Limited (PDL)Lyrics Licensed & Provided by LyricFind

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