Ab Ke Barsat Ki Rut

Chitra Singh

अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा लोग भी काँच के हैं, राह भी पथरीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने अब ये कहता है के रंगत ही मेरी पीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है मुझको बे-रंग ही कर दे ना कहीं रंग इतने मुझको बे-रंग ही कर दे ना कहीं रंग इतने सब्ज़ मौसम है, हवा सुर्ख़, फ़िज़ा नीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है

Written by: Jagjit Singh, Muzaffar Warsi (Emi Pak)Lyrics Licensed & Provided by LyricFind

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