Umeed Ki Koi Shama Jalti Rahi

Abhijeet Bhattacharya

उमीद की कोई शमा जलती नहीं क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नहीं उमीद की कोई शमा जलती नहीं क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नहीं कई बार जो गये थे कहीं जाके खो गये त वो मौसम तो फिर आ गये हमे जो भीगो गये थे नशे में डुबो गये थे वो बादल तो फिर छा गये लेकिन खबर महबूब की मिलती नही क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नही उमीद की कोई शमा जलती नही क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नही ये कैसी है बेवफ़ाई मेरी याद भी ना आई बहोट मैने चाहा जिन्हे तसवउर में छाए है वो ज़हन में समाए है वो तो मैं कैसे भूलूँ उन्हे उनके बिना दिल की काली खिलती नही क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नही उमीद की कोई शमा जलती नही क्यूँ रात ये घाम की मेरे ढलती नही

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